Sikh Dharm Mein Amrit Chakna Kya Hota Hain? Amritdhari Sikh ke Niyam kaya हैं?

 

सिख धर्म में अमृत छकना क्या होता है? अमृतधारी सिखों ​​के नियम क्या हैं?

आइये जानते हैं सिख धर्म के लोग अमृत क्यों छकते हैं। अमृत छकने बाद अमृतधारी सिख के नियम क्या हैं और जीवन में क्या महत्व हैं अमृत का-

इतिहास

सन 1699 में, तख्त श्री केशगढ़ साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अमृत की दात सिख धर्म के उपदेशो पर चलने वाले अनुयायियों को प्रदान करी। सिख धर्म के उपदेशो को मानने वाले लोगो को भय मुक्त करके निडर, साहसी और वीर बनाया। लोगो के अंदर फैले गोत्र को खत्म किया और अमृत की दात प्राप्त करने वाले इंसान को सिंह और कौर की उपाधि दी। 

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अमृत की दात बनाते हुए (काल्पनिक चित्र ) 

गुरु गोबिन्द सिंह जी जो पहले गुरु गोबिन्द राय थे , पाँच प्यारे से अमृत छकने के बाद तब गुरु गोबिन्द सिंह जी कहलाये। 

प्रक्रिया

अमृत छकने से पहले सभी लोग जो अमृत छकने के लिये आते हैं उन्हे, सिख धर्म की रहत मर्यादा बताई जाती हैं। सभी को रहत मर्यादा बताने के बाद अमृत छकने वाले लोगो से दुबारा पूछा जाता हैं कि कोई अगर रहत मर्यादा का पालन न कर सकता हो तो वह अभी छोड़ कर जा सकता हैं।   

सिख पंथ की मर्यादा अनुसार, पाँच सिख जो साबत सुरत (जो अपने सिर से पैर तक बाल नही काटते) होते और जिन्हे गुरबानी कंठ (स्मरण) होती हैं, अमृत छकने आये लोगो को अमृत छकाते (ग्रहण करना, पिलाना) हैं।

पाँच प्यारे गुरू ग्रंथ साहिब जी के सामने बैठ कर लौहे का बाटा (बर्तन) में खंडे के साथ बतासे डालते हैं और खंडे के साथ बतासों को घोलते हैं और साथ में  जपु जी साहिब, जापु साहिब, त्व प्रसादि सवैये, चौपई साहिब, आनंद साहिब (40 पोड़िया) गुरबानी का पाठ करते हैं और सभी अमृत छकने वाले पुरष, औरत एवं बच्चे खड़े होकर सत्कार से,आदर से  गुरबानी सुनते हैं।        

क्या होता हैं अमृत 

प्रक्रिया होने के बाद , सरब लोह के बाटे में गुरबानी का रस मिलकर अमृत का बाटा तैयार हो जाता हैं। सभी अमृत छकने वालो को एक पंक्ति में खड़ा कर के एक ही बाटे से अमृत की दात दी जाती हैं। उस समय अमृत की दात पहला कदम होता हैं गुरु का सिख बनने के लिए। 

नए बने अमृतधारी सिखो को गुरबानी पढ़ने और उसे समझने के लिए कहा जाता हैं और प्रतिदिन नितनेम करने का हुकुम दिया जाता हैं। गुरु गोबिन्द सिंह जी के हुकुम बताया जाता हैं कि आज से गुरु ग्रंथ साहिब जी के बिना किसी देहधारी गुरु के सामने शीश नही झुकाना और गुरबानी का सिमरन करना हैं।  

आज्ञा भई अकाल की, तबे चलायों पंथ। 

सब सिखन को हुकुम हैं, गुरु मानयो ग्रंथ। 

गुरु ग्रंथ जी मानयो , प्रगट गुरा की देह।    

गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कहा हैं अमृत की शक्ति तब तक हैं जब तक मेरा गुरसिख, मेरा खालसा रहत मर्यादा के अनुसार अपना कार्य करे अगर दूसरे लोगो की तरह अन्ध-विश्वास में रहेगा तब इस अमृत की शक्ति खतम हो जाएगी। 

जब लग खालसा रहे न्यारा, तब लग तेज दिहो मैं सारा। 
जब यह गए बिप्रन की रीत, मैं न करूँ इनकी परतीत।       

अमृत के नियम   

यहाँ अमृतधारी सिखों के मुख्य नियम और अनुशासन दिए गए हैं:


1. पाँच ककार (5K):

  • अमृतधारी सिखों को पाँच ककार धारण करना अनिवार्य है:

  • केश: बाल नहीं काटना और उन्हें सम्मानपूर्वक संभालना।
  • कड़ा: लोहे का कडा , जो ईश्वर की याद और सिख धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है।
  • कच्छरा : विशेष प्रकार का अंडरगारमेंट, जो शुद्धता और अनुशासन का प्रतीक है।
  • कृपाण: छोटी तलवार, जो अन्याय के खिलाफ खड़े होने और धर्म की रक्षा के लिए है।
  • कंघा: बालों को साफ-सुथरा रखने के लिए लकड़ी की कंघी।

2. रोज़ाना की नितनेम बाणियां :

सुबह: जपु जी साहिब, जापु  साहिब, और तव-प्रसाद स्वैये , चौपई साहिब ,आनंद साहिब 

शाम: रहिरास साहिब।

रात: कीरतन सोहिला।


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🙏वाहेगुरु जी का खालसा । वाहेगुरु जी की फतेह । 🙏

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