गुरू गोबिन्द सिंह जी ने अपने सेवक की रक्षा की ?
वैश्या के घर के बाहर पहरा क्यों दिया? कौन था भाई जोगा?
गुरु गोबिन्द सिंह जी अपने हर सेवक की मन और तन दोनों की रक्षा करते हैं। जब भी सेवक किसी भी विपत्ति में होता हैं या गुरु का सिख अपने सिद्धांतों को भूल कर गलत दिशा में चलने लगते हैं, तब गुरु अपने सेवक की मदद के लिए खुद आते हैं या अपने किसी भगत को भेजते हैं।
आज हम बात करते हैं भाई जोगा जी की और हम भी सीख लेते हैं इस साखी से कि कैसे गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सेवक की रक्षा कैसे की आइये जानते हैं-
भाई जोगा जी का जन्म पेशावर मे हुआ। उनके पिता जी गुरमुख सिंह , गुरु गोबिन्द सिंह जी के अनन्य भगत थे। एक दिन उनके पिता जी और भाई जोगा जी जो उस समय किशोर अवस्था मे थे , गुरू गोबिन्द जी के दर्शन करने आये।उनहोने अपना परिचय दिया और कहा मैं जोगा । तब गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पूछा - तू किधे जोगा, भाई जोगा जी ने कहा , मैं आपके जोगा। भाई जोगा जी आनंदपुर साहिब मे ही गुरु जी की सेवा करने के लिए रुक गए।
कुछ वर्ष बीतने के बाद , भाई जोगा जी के पिता जी, गुरु जी से विनती करते हुए कहते हैं कि भाई जोगा जी का विवाह करना हैं। उनकी बेनती सुन कर, गुरु जी ने भाई जोगा जी को आदेश दिया की आप अपने घर जा कर आनंद कारज (विवाह के रीति रिवाज) करे , पर ध्यान रखे जब भी मेरा हुकुम आए, आप जो भी कार्य कर रहे हो, उसे बीच मे छोड़ कर आनंदपुर साहिब वापिस आ जाए।
गुरु जी का हुकुम मानकर, भाई जोगा जी अपने गांव चले जाते हैं और विवाह के कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। विवाह के दिन गुरु जी अपने कुछ सिखों को हुकुम देते हैं कि भाई जोगा जी को बुलाया जाए। भाई जोगा जी का आनंद कारज हो रहा था तभी गुरु जी के सिख ने भाई जोगा जी को संदेश दिया कि गुरुजी ने उन्हें वापस बुलाया हैं गुरु जी का हुकुम सुनकर भाई जोगा जी शादी को बीच मे छोड़ देते हैं और आनंदपुर साहिब के लिए चल पड़ते हैं।
अहंकार के कारण कैसे गलत दिशा में
भाई जोगा जी को अहंकार हो गया कि मैं गुरु जी हुकुम को मानते हुए, अपनी शादी छोड़कर आया हूँ। मैं गुरु का सबसे बड़ा सिख हूँ।
रास्ते में शाम होने की वजह से भाई जोगा जी एक गांव मे रुक जाते हैं। रास्ते मे, घर की खिड़की पर एक सुंदर वैश्या ने उन्हे बुलाया। उनके सौंदर्य को देखकर, भाई जोगा जी अपने सिख सिद्धांतों से भटक गए। जैसे ही भाई जोगा जी उसे वैश्य के घर की तरफ कदम बढ़ाए तभी वहाँ घर के पास खड़े एक खालसा को देखकर पीछे हट गए। जिन्होने बाणा (पोशाक) और ककार ( कृपाण, कडा आदि ) पहने हुए थे। जैसे ही वह खालसा हटेगा तब मैं उसे वैश्य के घर की तरफ चला जाऊंगा। ऐसे विचार उनके मन में आते रहे।
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भाई जोगा जी को रोकते हुए (एक काल्पनिक चित्र) |
बार-बार जब भाई जोगा जी वैश्या के घर की तरफ आते उसे वह वही खड़ा हुआ मिलता। ऐसा करते-करते सुबह हो गयी। सुबह भाई जोगा आनंदपुर साहिब की तरफ चल पड़े।
जब भाई जोगा जी गुरु गोबिन्द सिंह जी के सामने दर्शन के लिए आए तब उन्होंने देखा की गुरु गोबिन्द सिंह जी की आंखें लाल है। उन्होंने पूछा गुरु जी आपकी आंखें लाल कैसे हो गई? फिर गुरु जी ने उत्तर देते हुए कहा- जोगा जगावे वी तू, नाले पूछे वी तू।
अर्थ - मेरा जोगा भटक गया था उसके लिए मुझे सारी रात जागना पड़ा और पहरा देना पड़ा अब जोगा तुम पूछ रहे को की आँखें लाल क्यों हैं ?
जिसे सुनकर भाई जोगा जी को महसूस हुआ कि वह उसके बारे में ही बात कर रहे हैं और शर्म के मारे आंखें झुक गई और उनके अंदर का अहंकार भी नष्ट हो गया। भाई जोगा जी ने , दशमेश पिता गुरु गोबिन्द सिंह जी के सामने अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी।
गुरु जी ने दयाल होकर उसके गलतियों को माफ किया और कहा अपने सिख सिद्धांतों को कभी मत भूलना। गुरबाणी में कहा गया है
"जब लग खालसा रहे न्यारा,
तब लग तेज दूँ में सारा
जब एह गए बिप्रन की रीत,
मैं न करूँ इन की परतीत"
अर्थात- जब तक गुरु का सिख, धर्म के मार्ग पर चलेगा तब तक मेरा आशीर्वाद उसे प्राप्त होता रहेगा। जब यह दूसरे लोगों की तरह भटक जाएगा तब मैं भी इसका साथ छोड़ दूंगा।
इसलिए हम भी अपने अंदर बैठे अकाल पुरख परमात्मा की आवाज को सुने और बुरे कार्यो से हमेशा दूर रहे। यह तभी होगा जब हम परमात्मा का नाम जपे, उस परमात्मा का सिमरन करे जिससे हमारे अंदर बैठे काम रुपि विकार का अंत कर सके।
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