Chamkaur ki ladai mein kaun se Sahibjade aur Panj pyare shaeed hue the?


गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े साहिबज़ादे कहाँ  शहीद हुए और उनका देह संस्कार किसने किया ?

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े साहिबज़ादो की शहीदी :

चमकौर की गढ़ी:

  • यह वही स्थान है, यह गुरुद्वारा 1704 में हुई चमकौर की प्रसिद्ध लड़ाई से जुड़ा है, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके 40 सिंहों ने लाखों की संख्या में मौजूद मुगल सेना का सामना किया था। जिसे आज चमकौर साहिब कहते हैं। 
  • छोटी-सी गढ़ी (किला) में रहकर गुरु जी और उनके सिखों ने मुगलों की भारी सेना को रोकने का साहसिक कार्य किया। 

गुरुद्वारा कची गढ़ी
गुरुद्वारा कची गढ़ी 

साहिबजादों  व  अन्य सिखों की शहादत: 

गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे, साहिबज़ादा अजीत सिं (18 वर्ष) और साहिबज़ादा जुझार सिंह (14 वर्ष), क्रमशः अपनी-अपनी टुकड़ियों का नेतृत्व करते हुए शहीद हुए।  

अन्य सिख जिसमे तीन प्यारे भाई हिम्मत सिंह , भाई मोहकम सिंह, भाई साहिब सिंह  और भाई संगत सिंह ( जिसने गुरु साहिब जी का भेष बनाया मुगुलों को भ्रमित करने के लिए) और अन्य सिंह युद्ध में शहीद हुए। 

चमकौर की लड़ाई के बाद, मुगलों ने सिखों के शवों को मैदान में छोड़ दिया और उनके अंतिम संस्कार में रुकावट डालने की कोशिश। 

मुगलों की चेतावनी के बावजूद, बीबी शरण कौर ने धर्म और परंपरा का पालन करते हुए साहिबजादों व अन्य सिखों की चिताएं तैयार कीं और उनके देह का अंतिम संस्कार किया। जहाँ आज गुरुद्वारा क़तलगढ़ साहिब शोभित हैं। 



गुरुद्वारा क़तलगढ़ साहिब
गुरुद्वारा क़तलगढ़ साहिब 

गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब, पंजाब के चमकौर साहिब में स्थित एक प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। हर साल उनकी शहादत को सिख समुदाय "शहीदी सप्ताह" के रूप में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाता है।  

शहीदी सप्ताह के आयोजन: (हर साल 20 दिसंबर-28 दिसंबर ,  6 पोह से 14 पोह  पंचांग कलेंडर के अनुसार) 

  • गुरुद्वारे में शहीदी सप्ताह के दौरान विशेष अरदासें (प्रार्थनाएं) और कीर्तन आयोजित किए जाते हैं, जिसमें शहीदों की वीरता और बलिदान का वर्णन किया जाता है।
  • शहीदी दिवस पर, विशेष रूप से चमकौर साहिब और  फतेहगढ़ साहिब जैसी प्रमुख धार्मिक जगहों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
जानिये छोटे साहिबजादो की शहीदी कैसे हुई और अंतिम संस्कार किसने किया 

इस समय को सिख समुदाय में समर्पण, सेवा और बलिदान की भावना को और मजबूत करने के रूप में देखा जाता है।

🙏 वाहेगुरु जी का खालसा।।🙏

🙏वाहेगुरु जी की फतेह जी।। 🙏

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