Bhagat Kabir Ji Salok in Guru Granth Sahib


गुरु ग्रंथ साहिब में भगत कबीर जी की बाणी भी शामिल हैं पर कैसे आइये जानते हैं !   

कबीर दास एक महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे:  

भगत कबीर का जीवन कैसा था क्या आपको पता हैं : 

भगत कबीर दास जी एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वाराणसी) में हुआ था। उनके पिता का नाम नीरू था और माता का नाम नीमा था।

कबीर दास जी का जीवन बहुत ही साधारण था। वह एक जुलाहे के रूप में काम करते थे और अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। लेकिन उनका मन हमेशा आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर की भक्ति में लगा रहता था।

👉संत कबीर जी अंधविश्वास, डोंग, पाखंड का विरोध किया । 

👉उन्होने हमेशा जाति-पाति और ऊंच-नीच के भेदभाव का खंडन किया।  

कबीर दास जी ने अपने जीवनकाल में बहुत सारी कविताएं और दोहे लिखे, जो आज भी पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताओं में उन्होंने ईश्वर की महिमा, प्रेम, और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में बताया है।


Bhagat Kabir Ji Salok in Guru Granth Sahib
Bhagat Kabir Ji

  गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज़ भगत कबीर जी के 229 पद जो 17 रागो और 243 श्लोक हैं (जिसमे 6 श्लोक सिख गुरू से संबन्दित हैं )   

Bhagat Kabir Ji Salok in Guru Granth Sahib  

उस  अनमोल बाणी के कुछ श्लोक जो आपकी ज़िंदगी को बदल सकती हैं इस प्रकार हैं -   

👉ਕਬੀਰ ਮਾਇਆ ਡੋਲਨੀ ॥ ਸੰਤਹੁ ਮਾਖਨੁ ਖਾਇਆ ਛਾਛਿ ਪੀਐ ਸੰਸਾਰੁ॥ (पंजाबी)

कबीर माइएया ढोलनी । संतो  माखन खाया छाछ पिये संसार। (हिन्दी)

अर्थ : कबीर जी कहते हैं - ये प्रभु की माया एक ढोलनी ( जिसमे माखन निकालते हैं ) के समान हैं । जिसमे संत /परमात्मा में लीन व्यक्ति माखन का आनंद लेता हैं और दूसरे लोग लस्सी पीकर गुजारा करते हैं।   

👉ਕਬੀਰ ਜਿਸੁ ਮਰਨੇ ਤੇ ਜਗੁ ਡਰੈ ਮੇਰੇ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ॥ ਮਰਨੇ ਹੀ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪੂਰਨੁ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥  

कबीर  जिस मरने ते जग  डरे मेरे मन  आनन्द । मरने ही ते पाईये पूर्ण परमानद।  

अर्थ : कबीर जी कहते हैं - जिसके मरने से ( अहंकार ) लोग में डर रहता हैं , उसे मारने में मुझे आनन्द मिला। क्यूंकी बिना अहंकार को मारे उस प्रभु की प्राप्ति नही हो सकती। 

👉 ਕਬੀਰ ਤਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਜਾ ਕੋ ਠਾਕੁਰੁ ਰਾਮੁ ॥ ਪੰਡਿਤ ਰਾਜੇ ਭੂਪਤੀ ਆਵਹਿ ਕਉਨੇ ਕਾਮ ॥

कबीर ता  सियो प्रीत कर जा को ठाकुर राम । पंडित राजे भूपति आवे कऊणे  काम।  

अर्थ : कबीर जी कहते हैं - प्यार , मिनन्ते करनी हैं तो उस अकाल पुरख / प्रभु  राम, वाहेगुरु, अल्ला  जिसके अनेक नाम हैं  उससे कर । ऊचे  पध संतरी , मंत्री तेरे किसी काम नही आएंगे क्यूंकी ये आज हैं शायद कल न हो।

👉 ਕਬੀਰ ਸੂਤਾ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਉਠਿ ਕਿ ਨ ਜਪਹਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥ ਇਕ ਦਿਨ ਸੋਵਨੁ ਹੋਇਗੋ ਲਾਂਬੇ ਗੋਡ ਪਸਾਰਿ ॥ 

कबीर सुता किया करह उठ के न जपह मुरार। एक दिन सोवन होएगो लबे गोढ़ पसार। 

अर्थ : कबीर जी कहते हैं -इंसान हर समय सोया रहता हैं ( मन से ) उस मुरारी ( कृष्ण प्रभु ) का नाम सिमरन नही करता। एक दिन जेबी तेरे प्राण निकाल जाएंगे तब हमेशा के लिए सो जाएगा । इसलिए हर समय प्रभु का सिमरन कर।   

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